आशा पाटील आ रही है... वो इतने बजकर इतनी मिनट पर वाघा बार्डर पार कर वतन पहुंच रही है.. अपने वतन! उसके चेहरे के हाव भाव .. उसका सामान.. उसके कपड़ों और तमाम छोटी छोटी बातों को न्यूज चैनलों पर इस तरह दिखाया गया ...गोया आशा पाटील ना हुई किसी संप्रभु राष्ट्र की राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री हो गई जो भारत के साथ महत्वपूर्ण वार्ता के लिए आ रही हो। वैसे तो मीडिया ने आशा पाटील के बारे में इतना कुछ बता दिया है कि उसका परिचय देने की जरूरत नहीं होनी चाहिए.. लेकिन अगर आपको नहीं मालूम तो बता दें कि आशा पाटील मुंबई के पास मीरा रोड में रहती थी । इंटरनेट पर चैटिंग करते करते उसे पाकिस्तानी युवक खालिद से प्यार हो गया। साल 2006 में वह शादी करके पाकिस्तान चली गई। सबकुछ ठीकठाक था लेकिन एक महीने पहले उसके पति की मौत हो गई। कुछ दिन बाद ही उसने अपने ससुरालवालों पर आरोप लगाने शुरू कर दिए कि वे उस पर जुल्म ढा रहे हैं। मदद के लिए भारतीय दूतावास की शरण में गई। मामला सुर्खियों में आया तो पाकिस्तान सरकार ने भी सक्रियता दिखाई और उसके ससुरालवालों के खिलाफ मामले दर्ज हुए। इसमें कुछ भी खास नहीं है । सिवाय इसके कि उसने पाकिस्तानी युवक से शादी की और वहां चली गई। सबकुछ उसका निजी था। कई भारतीय लड़कियां शादी दूसरे देशों के लड़कों से शादी करके वहां बसी हैं और कुछ को वहां धोखा या जुल्म का सामना भी करना पड़ा है। सवाल ये है कि आशा पाटील के मामले में ऐसी क्या खास बात थी जो मीडिया ने इसको इतना तूल दिया। क्या इसलिए की वो हमारे ऐसे पड़ोसी देश की बहू बन गई जिसके साथ हमारे संबंध कभी गरम कभी नरम रहते हैं या फिर उसने मजहब और सरहद की दीवार लांघी इसलिए। लेकिन ऐसा तो पहले भी कई बार हुआ है। और सौ बातों की एक बात आशा पाटील ने जो किया अपनी मर्जी से किया.. वो प्यार.. शादी और पाकिस्तान बसने का उसका निजी फैसला था.. इसमें ऐसा कौन सा उसने महान काम किया जो उसकी स्वागत ऐसे हुए जैसे जंग फतह करके आए सिपाहियों का होता है। कई रिपोर्टरों ने अपने लाइव में कहा कि भारत की बेटी बहुत बड़ा काम करके आ रही है । मैं पूछना चाहता हूं कि ऐसा कौन सा बड़ा काम कर दिया जो उसकी छोटी से छोटी बात हैडलाइन बन गई। देश या समाज के लिए उसका क्या इतना बड़ा योगदान है। इतना सम्मान तो क्रिकेट को छोड़कर दूसरे खेलों के हमारे चैंपियनों को भी नहीं मिलता। सरहद पर तैनात सिपाहियों को भी नहीं मिलता। लेकिन न्यूज चैनलों ने उसकी अगवानी ऐसे की जैसे उसका योगदान कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स या पीटी ऊषा से ज्यादा हो।
मजे की बात तो ये कि आशा पाटील ने यहां पहुंचकर बयान दिया कि उसे तीन पावरफुल भारतीय पाटील से कोई मदद नहीं मिली। उसका इशारा भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील, केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटील और महाराष्ट्र के गृहमंत्री आर आर पाटील की तरफ था। उसका कहना है कि पाकिस्तान सरकार ने उसकी ज्यादा मदद की। आशा पाटील शायद भारतीय दूतावस के सहयोग को भूल चुकी है। विदेश में मुसीबत के मारे दूसरे भारतीयों की मदद दूतावास ही करता है और उसे जो मदद करनी चाहिए थी वो की गई। आशा पाटील आखिर क्यों उम्मीद कर रही थी कि उसके लिए भारत की राष्ट्रपति और गृहमंत्री प्रोटोकोल ताक पर रखकर कार्यवाही करें। भारत या समाज के लिए उसने ऐसा क्या कर दिया है कि वो खुद को उस स्पेशल ट्रीटमेंट की हकदार मानती है। आशा के उस बयान से उन न्यूज चैनलों को निराशा हुई होगी जो आशा को किसी हीरो..सॉरी महान बहादूर भारतीय बेटी की तरह पेश कर अपनी टीआरपी बढ़ाने की फिराक में थे। जो आशा के साथ हुए जुल्म को किसी भारतीय बेटी के साथ पाकिस्तान के जुल्म की तरह मसालेदार अंदाज में पेश करने की योजना बना रहे थे। लेकिन आशा ने साफ कह दिया कि वो भारत में अपने बच्चे को जन्म देकर दुबारा अपनी ससुराल लौट जाएंगी। जाहिर है आशा के इस बयान से कईयों को निराशा हुई होगी। इसीलिए तो कैसी आशा.. किसकी आशा..
सोमवार, 14 जुलाई 2008
बुधवार, 2 जुलाई 2008
क़रार को लेकर बेक़रार कांग्रेस
परमाणु करार को लेकर कांग्रेस बेकरार है । लेकिन वाम मोर्चा तकरार पर उतारु है। उसने साफ साफ धमकी दे रखी है कि भैया अमेरीका से करार किया तो हम आपका करार यानी चैन छीन लेंगे। कांग्रेस ने भी दो टूक कह दिया है कि अब चाहे सिर फूटे या माथा.. सरकार जाए या रहे .. हम तो अमेरीका से करार कर के ही रहेंगे। लेफ्ट की लाल झंडी के जवाब में कांग्रेस ने मायावती को पटाने की भी कोशिश की लेकिन बहनजी ने टका सा जवाब दे दिया। अब कांग्रेस साइकिल के सहारे करार की मंजिल तक पहुंचने का ख्वाब देख रही है। चारा डाल दिया गया है और समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह के बदले बदले सुर देखकर लग रहा है कि मछली जाल में फंस गई है। अब ये मछली कांग्रेस की झोली में गिरती है या जाल तोड़कर चंपत हो जाती है .. इसका जवाब तो आनेवाला वक्त ही बताएगा लेकिन फिलहाल सियासी बिसात पर हर कोई अपनी अपनी गोटियां चलने में व्यस्त है। जनता महंगाई की मार से कराह रही है और पार्टियां सियासी खेल में मस्त है। न किसी को देश हित की पड़ी है और न ही जनता की । किसी ने परमाणु करार को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है तो कोई विरोध के लिए विरोध कर रहा है। हर कोई इसके जरिए चुनावी वैतरणी पार करने के सपने देख रहा है। अब इसमें किसे करार मिलता है और किसका करार छिनता है ये कहना मुहाल है।
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