ईंट पर ईंट कोई रखता नहीं
साया ए दीवार का हर किसी को इंतजार है।
दो कदम कोई आगे बढ़ता नहीं
मंजिल तक पहुंचने को हर कोई बेकरार है।
इश्क की आग में कोई जलता नहीं
मंजिल ए मोहब्बत के सब दावेदार हैं।
सच से वास्ता कभी रखा नहीं।
सच्चाई के वो पहरेदार हैं।
किसी गिरते हुए को कभी उठाया नहीं
खुदा के ये खिदमतगार हैं।
बुधवार, 10 सितंबर 2008
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8 टिप्पणियां:
आपका स्वागत है.. अब नियमित लिखें. शुभकामनाऐँ.
कृपा वर्ड वेरिफिकेशन हटा लेवे.. टिप्पणी देने में सुविधा होगी
बहुत सुंदर लिखा है. स्वागत है आपका.
अच्छा लिखा है मित्र.
अच्छा लिखा है। लगातार लिखें और दूसरों को भी टिप्पणियों से उत्साहित करते रहें। शुभकामनाएं।
मन की व्यथा का संप्रेषण ही जब बलवती हो जाए तो लेखन का आरम्भ होता hai.
और ये आप से मिलकर लगता hai, आपके सृजन से मिलना ही, आपसे मिलना hai.
apni रचनात्मक ऊर्जा को बनाए रखें.
कभी समय मिले तो आकर मेरे दिन-रात भी देख लें.
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
http://hamzabaan.blogspot.com/
http://saajha-sarokar.blogspot.com/
bahut badiya likha hain
bas aise hi likhte rahiye
सच्चाई, ईमानदारी, सज्जनता और सौजन्य जैसे गुणों के बिना कोई मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता।
आपका स्वागत है, अब नियमित लिखें, शुभकामनाऐँ.
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