बुधवार, 11 जून 2008

आइये बारिशों का मौसम है.

कभी बरसात का मौसम बड़ा रंगीन लगता था। रात के सन्नाटे में बिस्तर पर लेटे रिमझिम फुहारों का संगीत दिल में गुदगुदी पैदा कर देता था। मन मयूर नाचने लगता था । एक अकेले छतरी तले आधे आधे भीगने और गर्म मसालेदार भुट्टे मे जो अलौकिक आनंद मिलता उसे शब्दों मे बयां करना मुश्किल है। कल्पना करके ही मन का पपीहा पीहू पीहू करने लगता है। लेकिन मुम्बई में दो दशक से भी ज्यादा गुजारने के बाद अब तो सिर्फ़ यादें ही बची है। मुम्बई की आपाधापी और रोजी रोटी की जद्दोजहद में बारिश का संगीत ना जाने कहाँ खो गया है। बारिश आती है तो लगता है मुसीबतों की बरसात लेकर आई है। सड़के नालों में तब्दील हो जाती है। रास्तों पर ट्रैफिक जाम हो जाता है। मुम्बई की धड़कन कही जानेवाली लोकल ट्रेनों की रफ़्तार पर ब्रेक लग जाता है। कोई जर्जर इमारत धराशायी हो जाती है और आशियाने कब्र बन जाते है। गैस्त्रो और लेप्तो जैसी बीमारियों के शिकार मरीजों की डाक्टरों के यहाँ कतार लग जाती है। पता नही हालत बदल गए है या फ़िर मेरा नजरिया। नही जानता । आप क्या कहते है।

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