रविवार, 29 जून 2008

आरुषि के हत्यारे

आरुषि का हर रोज कत्ल हो रहा है। कातिल ने तो आरुषि को एक बार मारा था लेकिन कुछ न्यूज चैनल और उसके कथित खोजी पत्रकार हर रोज आरुषि की हत्या कर रहे हैं। देश को जागरुक करने का ठेका लेनेवाले ये चैनल आरुषि की खबर जिस तरह बेच रहे हैं वो वीभत्स और शर्मनाक है। कोई टी शर्ट पर लगे खून के धब्बे दिखाकर कातिल को बेनकाब करने की कोशिश कर रहा है तो कोई कैमरे के सामने मोबाइल फोन तोड़कर सीबीआई अफसरों को भी चुनौती दे रहा है। अभी तक तो ये माना जाता था कि पत्रकार का काम खबर देना होता है। लेकिन लगता है अब इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकारों ने जांच एजेंसियों का काम संभाल लिया है। खैर , अगर ये पत्रकार शर्लाक होम्स बनना चाहते हैं तो किसी को क्या आपत्ति हो सकती है लेकिन जिस तरह आरुषि हत्याकांड को हर रोज पेश किया जाता है उससे शायद मौत के बाद भी आरुषि की आत्मा को शांति नहीं मिली होगी।
सवाल ये है कि क्या ये इस तरह की पहली हत्या है। क्या देश में कहीं हत्याएं नहीं होती है। क्या देश के सामने आरुषि मर्डर केस सबसे बड़ा मुद्दा है। क्या इसके अलावा खबरों का अकाल पड़ गया है।
दूसरे लोगों की तरह मैं भी चाहता हूं कि आरुषि के हत्यारे जल्द से जल्द पकड़े जाएं और उनको उनके गुनाह की कड़ी से कड़ी सजा मिले लेकिन आरुषि की मौत को भुनाने की ये घिनौनी कोशिश कम से कम बंद होनी चाहिए।

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